अहंकार सफलता में बाधक

 

How to be successful in life ?

कार्तिक क्लास में प्रथम आया, बस उसमें अहंकार भर गया। क्लास के मित्रों से संपर्क कम कर दिया।  मित्रों को भी समझ आ गया कि कार्तिक को अभिमान -अहंकार हो गया है। वे लोग भी उससे मुँह मोड़ लिये।

इसी प्रकार हमारी सोसाइटी में अंकुर जी ने घर खरीदा । वे आईएएस अधिकारी हैं । उनकी पत्नी रिचा जी से मिलने सोसाइटी की महिलाएं गयीं , बेहद साधारण ढंग से उनके साथ पेश आयीं। उनके लिए सभी की यही टिप्पणी थी ‘आईएएस की बीबी है तो क्या समझती है हम उससे काम है क्या ?

आलोक मिनिस्टर का बेटा है। देहरादून के हॉस्टल में रह कर पढ़ता था । १२ वीं पास करने के बाद अब अपने मिनिस्टर पापा के पास आ गया , यही कॉलेज में नामांकन करा लिया है । बड़ी सी कार में अपने  बॉडीगार्ड के साथ कॉलेज जाता है। क्लास में किसी से बात नहीं करता। कोई उससे दोस्ती बनाना चाहता है तो वह ऐसा दर्शाता है जैसे कोई उसके स्तर का नहीं है। आज कॉलेज का सभी युवक उससे दूर रहता है क्योकि उसे अहंकार है मिनिस्टर पुत्र होने पर।

इस प्रकार ऊपर की स्थितियों को देख कर पता लगता है की थोड़ी सी अमीरी या सफलता व्यक्त्ति को अहंकार से भर देता है । वह अपने को बड़ा और बाकि सभी को निम्न स्तर का समझने लगता है।

लेकिन हमारा इतिहास गवाह है की अभिमान से ही पतन का प्रारंभ होता है। अहंकार सफलता को खा जाता है। अहंकारी को दूसरों में केवल दोष ही दिखता है और उसे अपनी बड़ाई / प्रशंसा ही सुहाता है । जिसने उसकी प्रशंसा की  उसका वही दोस्त हो जाता है । फिर धीरे धीरे उसके चारों ओर वैसे लोगो की भीड़ बढ़ती जाती है, और वह पतन की ओर अग्रसर हो जाता है।

अतः अहंकार – घमंड – अभिमान सफलता में बाधक है । इसक त्याग करना ही श्रेष्ठ है।

 

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